Debt on Indians: भारतीयों पर कर्ज ₹4.8 लाख पहुंचा: दो साल में ₹90,000 का इजाफा, जानिए इसका असर क्या होगा?

Debt on Indians

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📌 Debt on Indians: हर भारतीय पर ₹4.8 लाख का कर्ज, जानिए इसका असर आपकी जिंदगी पर

भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ ही भारतीयों पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की जून 2025 की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में एक अहम खुलासा हुआ है – Debt on Indians यानी भारतीयों पर औसतन कर्ज ₹4.8 लाख तक पहुंच चुका है। यह आंकड़ा 2023 में ₹3.9 लाख था। यानी सिर्फ दो वर्षों में हर व्यक्ति पर करीब ₹90,000 का अतिरिक्त कर्ज जुड़ गया है।

इस लेख में हम 5 मुख्य सवालों के ज़रिए जानेंगे कि बढ़ते Debt on Indians का आपकी आर्थिक स्थिति और देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ रहा है।


Debt on Indians क्यों बढ़ रहा है?

लोग पहले से ज्यादा उधारी पर निर्भर हो रहे हैं। इस कर्ज में होम लोन, पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड का बकाया और अन्य रिटेल लोन शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नॉन-हाउसिंग रिटेल लोन – जैसे कि पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड लोन – में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है। वर्तमान में यह टोटल डोमेस्टिक लोन का 54.9% हिस्सा बनाता है।

Debt on Indians बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि उपभोक्ता खर्च करने के लिए अधिक कर्ज ले रहे हैं, जबकि उनकी आय उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ रही।


📊 क्या GDP के मुकाबले Debt on Indians चिंताजनक है?

RBI की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का घरेलू कर्ज जीडीपी के मुकाबले 42% है। यह आंकड़ा दूसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं (EMEs) के औसत 46.6% से कम है। यानी, तुलनात्मक रूप से भारत में Debt on Indians की स्थिति अभी नियंत्रण में है।

साथ ही, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में ज़्यादातर कर्ज लेने वालों की क्रेडिट रेटिंग अच्छी है, जिससे कर्ज न चुकाने का जोखिम कम हो जाता है। डेलिंक्वेंसी रेट – यानी जो लोग समय पर कर्ज नहीं चुका पाते – में भी कोविड काल की तुलना में गिरावट देखी गई है।


💼 माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में Debt on Indians की स्थिति कैसी है?

छोटे कर्ज़ यानी माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में भी Debt on Indians का असर देखने को मिल रहा है। यहां औसत लायबिलिटी 11.7% कम हुई है, लेकिन स्ट्रेस्ड असेट्स यानी बकाया या जोखिम वाले कर्ज की संख्या बढ़ी है। RBI ने यह भी कहा है कि कई माइक्रोफाइनेंस कंपनियां ऊंची ब्याज दरें और भारी मार्जिन वसूल रही हैं, जिससे गरीब और ग्रामीण ग्राहक कर्ज चुकाने में असफल हो रहे हैं।


🌍 भारत पर बाहरी Debt on Indians कितना है?

भारत पर बाहरी कर्ज यानी एक्सटर्नल डेट मार्च 2025 तक $736.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले साल के मुकाबले 10% अधिक है। यह GDP का लगभग 19.1% है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा नॉन-फाइनेंस कॉर्पोरेशन्स (35.5%), डिपॉजिट संस्थाएं (27.5%) और सरकारें (22.9%) हैं।

अमेरिकी डॉलर में लिया गया कर्ज टोटल एक्सटर्नल डेट का 54.2% है, जिससे विदेशी मुद्रा जोखिम भी बढ़ गया है। यह आंकड़े बताते हैं कि Debt on Indians सिर्फ घरेलू ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बढ़ रहा है।


👨‍👩‍👧‍👦 आम लोगों के जीवन पर Debt on Indians का क्या असर पड़ेगा?

आम नागरिकों के लिए Debt on Indians का मतलब है कि अब लोन लेना पहले से आसान हो गया है, लेकिन उसकी कीमत चुकाना भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। पर्सनल लोन, होम लोन या माइक्रोफाइनेंस लेने से पहले लोगों को अपनी चुकाने की क्षमता का ध्यान रखना चाहिए।

RBI की मौद्रिक नीति में लचीलापन होने से ब्याज दरें नीचे आ सकती हैं, जिससे कर्ज चुकाना आसान होगा। लेकिन माइक्रोफाइनेंस लोन लेते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उनकी ब्याज दरें अधिक होती हैं।


📈 भारत की इकोनॉमी और Debt on Indians का तालमेल

एक तरफ भारत की इकोनॉमी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुकी है। IMF के अनुसार, भारत की GDP पिछले 10 वर्षों में 105% बढ़कर 4.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। अनुमान है कि दिसंबर 2025 तक भारत जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

हालांकि Debt on Indians बढ़ना इस विकास का एक साइड-इफेक्ट है। विकास के साथ उपभोक्ता व्यय और ऋण लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।


🧾 नीति आयोग की राय: भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर

नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी का कहना है कि भारत जल्द ही दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि अभी भारत उस मुकाम तक नहीं पहुंचा है। दूसरी ओर, नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने मई 2025 में यह दावा किया था कि भारत जापान को पीछे छोड़ चुका है।

यह आर्थिक उछाल सकारात्मक है, लेकिन इसके साथ बढ़ता Debt on Indians एक ऐसी चुनौती है, जिस पर गंभीरता से ध्यान देना होगा।


📌 निष्कर्ष: Debt on Indians – विकास के साथ चुनौती भी

जहां भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, वहीं Debt on Indians की बढ़ती दर यह संकेत देती है कि वित्तीय संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। RBI और सरकार को चाहिए कि वे कर्ज लेने और देने की नीति में पारदर्शिता और सतर्कता बनाए रखें। आम लोगों को भी कर्ज लेने से पहले अपनी भुगतान क्षमता और ब्याज दरों की शर्तों को अच्छे से समझना होगा।

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